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शुकुनशास्त्र । रोहण तपै, मिरग बाजै तो आदर अणचिंत्या गाजै।

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शुकुनशास्त्र


रोहिणी तपे,
 मृग बाजे , 
आदर- खादर, 
अणचितिया ही गाजे ,
 पश्चिमी राजस्थान में इन दिनों आँधियों का जोर चरम सीमा पर है।लेकिन पुराने समय से चली आ रही कहावतों के अनुसार आँधी के पीछे बारिश भी आती है।उसी के तहत क्षेत्र के किसानों ने भी अपने अपने अनुमान लगाने शुरू कर दिए हैं।किसानों का मत है कि मानसून की अच्छी बारिश से पहले ....

रोहिणी तपे 
मृग बाजे 
आदर खादर 
अणचितिया गाजे 

               अर्थात 
पन्द्रह दिन लगातार आँधियों जिसका प्रतीक मृग(मृग बाजे)चलता है...वैसे भी हिरण की चाल तेज होती है... इन चालों या हवाओं के बाजनेको स्थानीय बोली वाईयां कहते है....जो बाजे ही भले...इन पन्द्रह दिनों को भी अलग अलग भागों में बांटा गया है।..
दो मुशा(मुषक) , 
दो कातरा , 
दो तीड्डी, 
दो ताव , 
दो बाजे जलहरो , 
दो विश 
दो भाव बाजे , 
तो हो जाए लीला लहर

 किसानों का अनुमान है कि अच्छे जमाने के शगुन इन आँधियों के चलने और वाईयों के आधार पर विचारे जा सकते हैं।
यदि मृग के पन्द्रह दिन लगातार आँधियाँ चलेगी तो न तो बिमारी फैलेगी
 न फसलों में कोई कीट पतंगों से नुकसान नहीं होगा...अच्छी पैदावार रहेगी।
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भाई जीत शांडिल्य की वाल से__!!वाया अनुज रोशन लोर्डिया।
आंधी के हालात मत पुछो भाई 
वैसे अकाल जमाने आदी की बातें भी खूब चल रही है
यदि रोहिणी नक्षत्र में गर्मी अधिक हो तथा मृग नक्षत्र में आंधी जोरदार चले, तो आर्द्रा नक्षत्र के लगते ही बादलों की गरज के साथ वर्षा होने की संभावना बन सकती है।

रोहण तपै, मिरग बाजै तो आदर अणचिंत्या गाजै।

एक दोहे में अकाल के लक्षणों का चित्रण इस प्रकार किया गया है :-

मिरगा बाव न बाजियौ, रोहण तपी न जेठ।
क्यूं बांधौ थे झूंपड़ौ, बैठो बड़ले हेठ।।

आर्द्रा नक्षत्र के प्रारंभ में यदि बारिश के छींटे हो जाएँ, तो शुभ माने जाते हैं और जल्दी ही बरसात होने की आशा बंधती है।

पहलों आदर टपूकड़ौ मासां पखां मेह।

यदि आर्द्रा नक्षत्र में आँधी चलनी शुरु हो जाये, तो अकाल का जोखिम न आने लगता है।

आदर पड़िया बाव, झूंपड़ झौला खाय।

यदि चौदह नक्षत्रों में दो- दो दिन के हिसाब से हवा नहीं चले, तो क्या- क्या होगा, इस विषय में निम्नलिखित छंद कहा गया है :-

दोए मूसा, दोए कातरा, दोए तिड्डी, दोए ताव।
दोयां रा बादी जळ हरै, दोए बिसर, दोए बाव।।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। 
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।

यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।

सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।


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